Monday 9 January 2012

NADI MATCH MAKING OF VAR AND VADHU



Enlarge fontFont size: Decrease font 
imageनाड़ीकूट विचार (Narikoot)
बड़े बूढे कहते हैं कि विवाह के पश्चात व्यक्ति नये जीवन में प्रवेश करता है, बुजुर्गों का यह कहना काफी हद तक सही भी है क्योंकि जैसे जन्म के पश्चात नया माहौल नया परिवेश और कुछ रिश्ते हमसे जुड़ जाते हैं ठीक उसी प्रकार विवाह के पश्चात व्यक्ति एक नये परिवेश और माहौल से रूबरू होता है जहां कई नये रिश्ते और नई बातें सामने आती हैं। विवाह के पश्चात शुरू होने वाले नये जीवन में खुशहाली के लिए कुण्डली मिलान किया जाता है। कुण्डली मिलान के क्रम में अष्टकूट से विचार किया जाता है, इन अष्टकूटों(Ashtkoot) में आठवां और अंतिम कूट है नाड़ी कूट।
ज्योतिषशास्त्र(Astrology) के अनुसार नाड़ी तीन प्रकार की होती है, इन नाड़ियों के नाम हैं आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी, अन्त्य नाड़ी। इन नाड़ियों को किस प्रकार विभाजित किया गया है आइये इसे देखें:
1.आदि नाड़ी: ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र और अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी में की जाती है।

2.मध्य नाड़ी: पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी में की जाती है।

3.अन्त्य नाड़ी: स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहणी, आश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण और रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है।

नाड़ी दोष (Aspersion) किन स्थितियों में लगता है आइये अब इसे समझते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब वर और कन्या दोनों के नक्षत्र एक नाड़ी में हों तब यह दोष लगता है। सभी दोषों में नाड़ी दोष को सबसे अशुभ माना जाता है क्योंकि इस दोष के लगने से सर्वाधिक गुणांक यानी 8 अंक की हानि होती है। इस दोष के लगने पर शादी की बात आगे बढ़ाने की इज़ाज़त नहीं दी जाती है।

आचार्य वाराहमिहिर(Acharya Varamihir) के अनुसार यदि वर-कन्या दोनों की नाड़ी आदि हो तो उनका विवाह होने पर वैवाहिक सम्बन्ध अधिक दिनों तक कायम नहीं रहता अर्थात उनमें अलगाव हो जाता है। अगर कुण्डली मिलाने(Kundli matching) पर कन्या और वर दोनों की कुण्डली में मध्य नाड़ी होने पर शादी की जाती है तो दोनों की मृत्यु हो सकती है, इसी क्रम में अगर वर वधू दोनों की कुण्डली में अन्त्य नाड़ी होने पर विवाह करने से दोनों का जीवन दु:खमय होता है। इन स्थितियों से बचने के लिए ही तीनों समान नाड़ियों में विवाह की आज्ञा नहीं दी जाती है।

महर्षि वशिष्ठ(Maharishi vashisht) के अनुसार नाड़ी दोष(Nari Aspersion) होने पर यदि वर-कन्या के नक्षत्रों में नज़दीकियां(Closeness in Nakshatra of Var And Kanya) होने पर विवाह के एक वर्ष के भीतर कन्या की मृत्यु हो सकती है अथवा तीन वर्षों के अन्दर पति की मृत्यु होने से विधवा होने की संभावना रहती है। आयुर्वेद के अन्तर्गत(Comprises of Ayurvedha) आदि, मध्य और अन्त्य नाड़ियों को वात(Mystique), पित्त (Bile) एवं कफ(Phlegem) की संज्ञा दी गयी है।

नाड़ी मानव के शारीरिक स्वस्थ्य को भी प्रभावित करता है(Nari also effect human health)। मान्यता है कि इस दोष के होने पर उनकी संतान मानसिक रूप से अविकसित  एवं शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं((Naridosh  also effect  Mind of their Child and Health of their Child)।

इन स्थितियों में नाड़ी दोष नहीं लगता है: ( Naridosha will not affect you in this Conditions)

1. यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र(Birth Nakshatras) एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।

2. यदि वर-वधू की एक ही राशि (Bride and Groom have Same Rashi) हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न (Different Birth Nakshatras) हों तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है।

3. वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्न-भिन्न(Different Rashi) हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।

नाड़ी दोष का उपचार: (Remedy of Naridosha)
पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राणप्रतिष्ठा (Pranpratishta)तथा महामृत्युञ्जय (Mrtunjai)
जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है। 

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